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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. ---- - ---- ॥ताको जैनउत्तर कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ।। जैन कहे ब्रह्म रीत इछाभावसौ अतीत गतदोष मोक्षमय इछा दोष गनीये, असंख्यप्रदेशी भी अखंड त्रिलु काल सदा ताके खंड करि वेको हेतुं कौन जानीये; ताते जीव हे अनंत निज ज्ञान गुणवंत नित्यानित्य भावमंत शुद्धनै वखानीये, तामै जे विभाव वसी ते ते भववासी कहे जे ते कर्ममुक्त ते ते सिद्ध बुछ मानीये ॥ ३५ ॥ ॥ अथ बौद्धमतकथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ बुद्ध कहे प्रथम समे मे जोउ जीव हुतो दुतीय समेमे सोउ जीव वस्तु नाहीहे, कर्ता हे कर्मकु जो सो तो भोगता न होय करे और लहे और मेरे मत मांही हे; जैसे जीव तैसे और वस्तु सब युही माने जाने न सरूप शुद्धबुद्ध रीति सोही है, परजै सभावको सर्वथा द्रव्य कहे रहे मद मत निज धोध धारा ढाही हे. ॥ ३६ ॥ ॥जैनकथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ जैन कहे. वस्तुरीत्य नीयत दरव नय नित्य निराबाध पर जायनै अनित्य हे, समै समै नयो होय तब कैसे एसी बात जाने यह मेरो कीनो यह मेरो कृत्य हे; बालपने कीनो काम वृधपने याद आवे एकांत अनित्य पक्ष गहवै असत्य हे; ताते 65 For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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