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द्रव्यप्रकाश. ---- - ----
॥ताको जैनउत्तर कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। जैन कहे ब्रह्म रीत इछाभावसौ अतीत गतदोष मोक्षमय इछा दोष गनीये, असंख्यप्रदेशी भी अखंड त्रिलु काल सदा ताके खंड करि वेको हेतुं कौन जानीये; ताते जीव हे अनंत निज ज्ञान गुणवंत नित्यानित्य भावमंत शुद्धनै वखानीये, तामै जे विभाव वसी ते ते भववासी कहे जे ते कर्ममुक्त ते ते सिद्ध बुछ मानीये ॥ ३५ ॥
॥ अथ बौद्धमतकथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ बुद्ध कहे प्रथम समे मे जोउ जीव हुतो दुतीय समेमे सोउ जीव वस्तु नाहीहे, कर्ता हे कर्मकु जो सो तो भोगता न होय करे और लहे और मेरे मत मांही हे; जैसे जीव तैसे और वस्तु सब युही माने जाने न सरूप शुद्धबुद्ध रीति सोही है, परजै सभावको सर्वथा द्रव्य कहे रहे मद मत निज धोध धारा ढाही हे. ॥ ३६ ॥
॥जैनकथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जैन कहे. वस्तुरीत्य नीयत दरव नय नित्य निराबाध पर जायनै अनित्य हे, समै समै नयो होय तब कैसे एसी बात जाने यह मेरो कीनो यह मेरो कृत्य हे; बालपने कीनो काम वृधपने याद आवे एकांत अनित्य पक्ष गहवै असत्य हे; ताते
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