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यमकापा.
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ताहीको विनाश दोनुं पुद्गलमे लसेहे; अनादिता कहे याको प्रसंग अनंत होत जेसे ज्ञान चेतनको योग सदा वसेहे, एते दोषवंत वानि तुम कहि कहा जानि गुरुजी हमारो चित्त संसयमांही धसे ।। २६ ।।
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॥ गुरु उत्तर कथन ॥ ॥ दोहा ॥
मिले हेतु विनसे जबे, वस्तु अनादि ज्युं सांत, कर्म भव्य पुंनसे, कनक मैल दृष्टांत. ॥। २७ ॥ आतम करे निजभावको, न करे परपरनाम, स्वस्वभाव किरीया करे, सो पावे शिव ठाम. ॥ २८ ॥ असद्भूत नीचे करे, भावकर्म ए जीव; द्रव्यकर्मको फुनिग्रहे, नयव्यवहार सदीव ॥ २९ ॥
|| शिष्य प्रश्न ॥ ॥ सर्वेया इकतीसा ॥
व्यापक अरु व्यापकको भाव इष्ट को शिष्ट करता करमकौ या नित्यहीकी रितहे, ताहीके अभाव कैसे द्रव्य कर्मपुद्गल करेगो चेतनराम तासौ जो व्यतीत हे; व्याप अरू व्यापकता तनमय गुणसंग परभावसंग ताको कहीवो अनीत हे, तदमे अभाव होत करमको करतार अनादि अनंत जीव कहीबेकी मीति हे ॥ ३० ॥
॥ गुरु उत्तर कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥
कर्मके निमित्त कहे आतमाके परिणाम आतम परिणामको निमित्त पूर्व कर्म है, याते दुहुभावद्दीको हेतु हेतुमंत भाव
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