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|| गुरु उत्तर ॥
॥दोहा॥ विर्षे पुद्गल मूर्छा करे, मदिरासे प्रमभावः चमकमे आकर्ष गुण, नवनव पुद्गल दाव. ॥ २१ ॥ त्यु ज्ञानावरणादि तर्नु, सक्ति जीउकी तोरस करहि विकल अज्ञानसो, फेरे भवकी दोर. ॥ २२॥
॥ शिष्य प्रश्न पुनः ॥
॥दोहा॥ हे स्वामी अणुद्रव्यमें, एति शक्ति न होय; जीव ज्ञानता मूदले, चेतनको गुन खोय. ॥ २३ ॥
॥ गुरु उत्तर कथन ॥
॥ सवैया तेवीसा ॥ कोउ पुमान पीये मदपानज होय विशुरू करे विकलाई, बुद्धिकी वृद्धि करे घृतब्रह्मीको मूर्छित जीव हुवे विखपाई, दर्शन कर्म उदै लहे नींदको जीवको जानपनो सब जाई, त्यु यह पुद्गल कर्मके खंध मीले जीउ शक्तिको लेहु दबाई. ॥२४॥
॥दोहा ।। छतो अज्ञान अनादिको, जीउको करे विकार अछती वात न होय कब, गगनकुसुम ज्युं धार. ॥२५॥
॥ शिष्य प्रश्न ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ शिष्य कहे सत्तारूप स्वभाव विभाव माने एकता प्रसंग होत द्वैतभाव नसेहे, अनुग्रह उपघात वस्तु शक्तिको प्रकास
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