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द्रव्यप्रकाश
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moria छिन्न पर क्रिया व्याधि पर द्रव्य न असेस लेस न अनंग हे, ज्ञान जोतिमा समान रतन त्रितयको जान ऐसो सुध नित्य देव मेरे घट संगहे. ॥ १७ ॥
॥ भेदज्ञानमहिमा कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ ऐसे कोउ जैननर भेदज्ञान भावधरि जीवकर्म भेद कीनो हंसक्षीर नीर ज्यौ, मोहको विनास कीनो आत्मगुन गहेलीनो भीनो शुद्ध धरामांहि जैसे जयवीर ज्यौआपविषे थीर भयो आपही आनंदरूप सुद्धस्वीय ध्यानध्येय ध्याता होय धीर ज्यौ, सुद्धबुद्ध वर्यो दुनो सुनौ भयो कर्मपुर ऊनो कीनो रागदोष पायो भवतीर ज्यो ॥ १८ ॥ ॥ स्यादवादशुद्धचेतन स्वरूप कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जामें उतपात व्यय ध्रुव धारा तीनो एक समे विची होइ रही गुणपर्ये ज्ञानमैं, एक है अनेक है कि करता अकरता ते भोगता अभोगता वखान्यो जिनशान, बुझ शिव ब्रह्मारूप मतिचेतनासरूप पुरन प्रकाश भये जिन जैन थानमैं, एसो शुअचेतन तन कितन संगतिसौ नट जैसे बाजी खेले भवके चोगानमैं ॥ १९ ॥
॥शिष्य प्रश्न ॥
॥दोहा॥ शिष्य कहे सद्गुरु सुनो, यह हम मन संदेह, जातिभेद ते क्युं भयो, जडचेतनको नेह. ॥२०॥
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