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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ द्रव्यप्रकाश जीवहीको या ते जीव रागादिक तादातम्यता दाव हे; संत कहे बंध्ये वितुं छुटो कहनो असत्य रागादिक एक माने मुक्तिको अभाव हे, या ते यह तहकीक कही देवचंद्रवात रागादिक पर द्रव्य कर्मको विभाव हे. ॥ १३ ॥ ॥ आतमशिक्षा कथन । ॥चौपाई ॥ सदा अनंत विकलपजल्पको धारते कहा बंधतहो कर्म नीकशी निज कार तेजो; विकल्प विनु एक नित्य निज अनुभवो, तो न करो पर बंध धरो न भव नवो. ॥ १४ ॥ ॥ अथ ज्ञान महिमा ॥ ॥दोहा॥ यह परमातम ज्ञान गुन, भवतरु छेदनहार; ध्येयरूप आदेय फुनि, मुनिजन मन आधार. ॥१५॥ ॥शिवभवहेतु कथन ॥ ॥दोहा॥ जिनवर जन सुखकर कह्यो, यह उपदेश उदार; शिव थानक निज गुन गहन, निज गुन त्याग संसार.॥१६ ॥ जीवमहिमा॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ जामे इंद्री पंचनाही कर्मको प्रपंच नाहि मनको न रंच जामे तनको न अंगहे, नाहि कर्म हेतु खेद मार्गनाको भयो छेद ध्यानध्याता भेद नत वचन तरंग हे; शांत ध्रुव निरूपाधि २८ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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