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द्रव्यप्रकाश
जीवहीको या ते जीव रागादिक तादातम्यता दाव हे; संत कहे बंध्ये वितुं छुटो कहनो असत्य रागादिक एक माने मुक्तिको अभाव हे, या ते यह तहकीक कही देवचंद्रवात रागादिक पर द्रव्य कर्मको विभाव हे. ॥ १३ ॥
॥ आतमशिक्षा कथन ।
॥चौपाई ॥ सदा अनंत विकलपजल्पको धारते कहा बंधतहो कर्म नीकशी निज कार तेजो; विकल्प विनु एक नित्य निज अनुभवो, तो न करो पर बंध धरो न भव नवो. ॥ १४ ॥
॥ अथ ज्ञान महिमा ॥
॥दोहा॥ यह परमातम ज्ञान गुन, भवतरु छेदनहार; ध्येयरूप आदेय फुनि, मुनिजन मन आधार. ॥१५॥
॥शिवभवहेतु कथन ॥
॥दोहा॥ जिनवर जन सुखकर कह्यो, यह उपदेश उदार; शिव थानक निज गुन गहन, निज गुन त्याग संसार.॥१६
॥ जीवमहिमा॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जामे इंद्री पंचनाही कर्मको प्रपंच नाहि मनको न रंच जामे तनको न अंगहे, नाहि कर्म हेतु खेद मार्गनाको भयो छेद ध्यानध्याता भेद नत वचन तरंग हे; शांत ध्रुव निरूपाधि
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