________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
द्रव्यप्रकाश.
॥ संवर हेतुकथन ॥ ॥ दोहा ॥
जान्यो आतम ज्ञानसो, आतम आस्रव भेदः तब आस्रव संवर भयो, गयो कर्मको खेद. ॥१०॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ अथ ज्ञाताजीववरणन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥
॥ उपदेशकथन || ॥ सवैया तेवीसा ||
५०७
काहुं एक संत जीव निज गुन गहि लीने पर गुन त्याग जोग पर जानी त्यागे है, विरम्यो विरुद्ध सेती रम्यो निज गुन रेती मोहके सुभट जेते ते ते दूर भागे हैं; रातौ निज आतमासो दूर टरयो हेतमांसो विमुख होय ज्ञान ध्यान लागे हे, ऐसे सुद्ध जीव देव करे नही कर्म देव सुखता सुधाह पाये संतरस पागे है ॥ ११ ॥
मूरख जीव धरे चित्तमे कहा जल्प विकल्प सदा दुखदाई, घ्यावहु ब्रह्म सदा अति उज्जल दूर तजो सब सोज पराई; दर्शन लाभ यहै जगमे वर जीवको काल अनंत सदाई, वदे देवचंद रहो हम सो ध्रुव अक्षर त्रय गुण प्रीति सदाई ॥ १२ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ रागादिकसौशिष्यप्रभ्नगुरुउत्तरकथन ॥ ॥ सवैया ॥
कोउ कहे रागादिक चेतनसो भिन्न नाहि आदि विनुं सदा काल एकही सभाव हे, कैसे अणुरागी नाही रागी कहो
२७.