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॥ जीवस्वभाव कथन ॥ ॥ सयैया इकतीसा ||
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द्रव्यप्रकाश.
|| जीवलक्षण ॥
॥ दोहा ॥
तिहुं काल जयवंत जो. चेतनता गुणखानि, लिपै न परके लेपसौ, सोउ जीव बखानि ॥ २ ॥
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कर्मको करता न भोगता न करमको आतम धर्मवंत परम अफंद है, असंख्य प्रदेशवर चेतना रमणीवर अस्तिआदि खटपर कारगुन कंद है; परभाव भावित सदाई अपरभाव निज परभाव भवभीती अमंद है, अनंत अमोदवंत संतसत्तावंत संत सदा देवचंद है || ३ ||
॥ जीवद्रव्यके व्यार पर्याय कथन | ॥ सवैया इकतीसा ||
मूल परजाय है अगुरुलघुको विकार खट हानि वृद्धिरूप द्रव्यको सरूप है, परपरजाय नर नरकादि अवधार मति आदि परजाय व्यंजन अनूप है; स्वभाव द्रव्यव्यंजन ए परजेचर मतनुं ताते न्यून सिद्ध अवगाहना अरूप है, अनंत चतुष्क गुण व्यंजन के परजाय निजकाज करतार निजगुण भूप है ॥ ४ ॥
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॥ एक द्रव्य एक क्रिया करे यह कथन ॥ ॥ चोपाई ॥ दोय द्रव्य एक किरिया न करे, दोय किरिया इक द्रव्य भिन्न धरे; एक वस्तु एक किरिया गने, यह यथार्थ जिनराज वखाने. ॥५॥
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