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५०४
व्यप्रकाश
ज्ञानदंस आवरन अंतराय ठानीये; ताही ते अधिकमोह कर्म परमाणु होत ताहिके अधिक वेदनीयके पीछानीये, याते तुछ अणुदल वेदनी प्रगट नांहि सरस निर सरूप भोजन ज्यु जानीये. ॥ ३२ ॥
॥ दोहा ॥ सर्व घाती परमाणु अति, देसघातके हीन; वीभजै बंधसमे तुरत, सक्ति जीवकी पीन. ॥३३॥
॥ जीवमहिमा कथन ॥
॥ दोहा ॥ इत्यादिक बहु कर्मदल, इनमे लपट्यो जीव; लहे विविधविध बंधको, तौभी मृक्त सदीव. ॥ ३४।।
॥ आतममहिमा ।।
॥ सवैया इकतीसा ॥ पुद्गल हे प्रगट चेतन है गुप्तरूप अणु मुरतीक ठीक जीव मूरतीन है, पुद्गल हे अजान जीव लोकालोक जान ज्ञानादिक गुनथान थिरतामे लीन है। चिरकाल कर्मसंग रह्यो तौभी कर्ममुक्त विवहारपक्ष गहे कर्मके अधीन है, अक्षर त्रिगुणइंद देवचंद ज्ञानवंद अक्षर सभाव लीये अक्षरस पीनहे. ॥३५॥ ॥ इतिश्री द्रव्यप्रकाशको द्वितीयद्वारं संपूर्णम् ।।
॥दोहा॥ वरण्यो पुद्गल द्रव्यको, संक्षेपे अधिकार अब वरनौ संक्षेपसौ, जीवदार सुविचार. ॥ १ ।।
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