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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्यप्रकाश. सित्तरी कोडाकोडी थीति, मोहनीयके वीस; सागर कोडाकोडी थीति, नामगोतके वीस. ॥२७॥ ॥ अष्टकर्म जघन्यथीति ॥ ॥दोहा ॥ पंचकर्मकी जघन्य थीति, एक महुरत होय; परमदेव अरु नरककी, सागर तेतीस जोय. ॥ २८ ॥ ॥ अथ रसबंध कथन । ॥दोहा॥ सर्वघाति उत्कृष्टरस, देस घातको मध्य गुन अवातीको हीनरस, आगममांहि प्रसिद्ध. ॥ २९ ॥ वरणगंध अरु फरस ते; रस अनंतगुण होयः कर्ममाही रस अनंत विनु, कर्म न बंधे कोय. ॥३०॥ ॥ अव प्रदेशबंध अष्ट वरगना सरूप कथन ॥ . ॥ सवैया इकतीसा ॥ उदारिक बैक्रिय आहारक तेजससौ भासा सासोस्वास मन कारमण अंतहे, एकाणुक आदि लै अभव्य जीवसौ अनंत . उदारिक अगहन गहन अनंतहे; वैकरीकी अगहन ताही सो अनंत तासो वैक्रिय गहन वरगना अनंत हे, आठोइ अनंत पुद्गलदल वृद्धमंत इनसौ विमुक्त देवचंद महासंतहे ॥३१॥ ॥ अथ कर्मदल विभंजन कथन ।। ॥ सवैया इकतीसा ॥ परयो मोहकर्मपास बंधे आठ कर्मफास तब सब थोरे अशु आउके बखानीये, ताते नामगोतकर्म अणुहे अधिक ताते २३ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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