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ट्रव्यप्रकाश.
॥ नामकर्मभेद ॥
॥ दोहा ।। नामकर्मके भेद बहु, वरणत बडे गरंथ; ताते वरनौ नाम कबु, जासे कछु अरथ. ॥ २२ ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ पैसठि प्रकृति पीड अठावीसहे अपीड सब मिल्यां नामभेद तिरानु कहानहे, तनपंचदशमांहि पांचको गहन कीजे वरनादी वीसमांही च्यारोइ गहनहे; तब सडसठी भेद भये बंधमांही गहे उदय उदीरनामे इनढुको मानहे, सत्ताके सरूपमांही त्रानवेकोहे उछाही देवचंद कर्ममुक्त सदा सुखथान हे. ॥२३॥
॥अथगोत्रकर्मभेद ॥
॥दोहा ।। उंच नीच दो भेदको, गोतकरम जड जान; मुंदे निजगुन अगुरुलघु, कुंभकारसम जान. ॥ २४ ॥
॥ अंतराय पांच भेद ॥
॥दोहा ॥ दान लाभ बल भोगको, वली उपभोग प्रकार इन पांचोको मुदले, अंतराय सो धार. ॥ २५ ॥ ॥ अष्टकर्म उत्कष्टधीति कथन ॥
॥दोहा॥ ज्ञानदर्शनावरण अरु, वेदनीय अंतराय, इनकि कोडाकोडी थीति, सागर तीस कहाय, ॥२६॥
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