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द्रव्यप्रकाश..
५०१
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॥ मिश्रष्टिवरणन॥
॥दोहा॥ वीतरागके वचनपे, नाहि राग नहि द्वेष, फलभक्षीनर अन्नज्युं, मिश्रमोहसे लेख. ।। १७ ॥
॥ सम्यकदृष्टिलक्षन ।
॥सवैया इकतीसा ॥ ज्याको तन प्रीति नांहि सातापर भिती नाहि ज्ञानरीति लीयो निज नीत माही वसेहे, निसंकादि अष्ट सिष्ट इष्ट निज गुननिष्ट अंतरंग बहिरंग संतरस लसेहे; इंद्री सुखसु विमुख सिक सुख सनमुख निज ज्ञान रूपसौ कलुष भाव नसे है, वरते धरमराग देवादिकपे सराग याते समकीत मोह राग संग हसे है ॥ १८ ॥
॥दोहा॥ मिथ्यामोह अशुद्ध दल, सुद्ध सो समकीत नाम: श्रद्धा सुचि रुचि तो सही, अति चार परनाम. ॥१९॥
॥ चारित्रमोहनीकेभेद ॥
॥चौपाई॥ चरनमोहके द्वै परकारा, तिहां कषायका बहु विस्तारा; नोकषायकी नवविध धारा, अब वरनो लछन परचारा.।।२०
॥आयुकर्मभेद ॥
॥दोहा॥ भवविपाकिगल जेलसम, अनवगाहको खेदा नरनारक तिग्ग अमर, आउकरम चौभेद. ॥ २१ ॥
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