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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. पुद्गल द्रव्य अनंत हे, सब नभ अंस समान, ताके खंध अनंत हे, नरदपास संठान. ।। ७॥ सो पुद्गल है दोय विध, इक अणु दूजो खंध, खंध दुविध एक जीव, विनु बीय कर्मको बंध. ॥८॥ ॥ पुद्गलखंध स्वरूप ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ छुटे अनुहे अनंत तेभी खंधमे मिलत अणुके सकंध होय खंध अनु होय हे, जे ते अनुहे अनंत ते ते खंध होय नाहि ऐसी वात कहे सोतो मुरख अबोह हे; तासै कहे द्रव्य पुद्गल परावर्तकाल मिले कैसी भांति जाकी पुद्गल सोहहे, अनुगति जीवसम थीतिहे अमीतनित कही अनुवात अब खंधको प्रबोहहे ॥९॥ ॥ पुद्गलपर्याय कथन ॥ ॥दोहा ।। छाया आतप तेजतम, सबदबंध लघूथुल, विठुरन मिलन प्रवाहगति, इनको पुद्गलमूल. ॥ १० ॥ केइ इंद्री गम्य हे, केइ अगम्य निरधार, संखअसंख अनंतअनु, त्रिधा खंध विस्तार. ॥११॥ ज्ञानहीन जडहेय सब, उपादेय जीउ सार, अब वरनौ निज ज्ञानहित, कर्मबंध विस्तार. ॥ १२ ॥ ॥ अथ कर्महेतु कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ पंचमिथ्याको अविरत बारसंच पंचविस संपराय योग पंच For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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