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द्रव्यप्रकाश.
॥ पुनः दृष्टांत ||
जैसे माटी जलसंग - बट दीपकादि चंग - नवनव भाव घरे मृदरूप बोइ है, तैसे कर्मजल जोग-जीव च्यारगति रोगलहेयें अखंड व चेतनत्व सोई है; ऐसो निज गुणवंत - अमल अखंड संत- ताहिको सरूप गहि सिद्धरूप जोइ है, कहे देवचंद वंदि ऐसे चिदानंद वितु मोक्षको साधक भइया और नही कोई है ॥ ३ ॥
॥ पुद्गल द्रव्य लक्षण ॥ ॥ दोहा ॥
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पूरण गलणन सभावधर, अस्तिकायमूर्त्तिक, फरसे वरण रसगंधमय, पुद्गलद्रव्य सु ठीक ॥ ४ ॥
॥ अथ पुगलगुणपर्याय कथन || ॥ सवैया इकतीसा ||
जाके मूल गुनगनि रूपी अचेतन भनि अस्तिपन आदि ae आठे ओघ गुन हे, पुरनगलनरूपी अनुकौ विसेस गुन है असाधारन के उरमाही जैन हे ||; हानिवृद्धिषटविध मूल परयाय याके द्वणुक प्रमुखखंध परजायआने है, एकवर्ण एक गंध एक रस द्वै फरस पांचो गुन याके मूल परीयैयजाने हे
॥५॥
|| पुद्गल द्रव्य सरूप ॥ ॥ दोहा ॥ अन्यसंधसौ मिलनकी, यामे सकति सदाय, याते परनासी प्रगऊ, अस्तिकाय कहेवाय. ॥ ६ ॥
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