SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra * www.kobatirth.org द्रव्यप्रकाश. ॥ पुनः दृष्टांत || जैसे माटी जलसंग - बट दीपकादि चंग - नवनव भाव घरे मृदरूप बोइ है, तैसे कर्मजल जोग-जीव च्यारगति रोगलहेयें अखंड व चेतनत्व सोई है; ऐसो निज गुणवंत - अमल अखंड संत- ताहिको सरूप गहि सिद्धरूप जोइ है, कहे देवचंद वंदि ऐसे चिदानंद वितु मोक्षको साधक भइया और नही कोई है ॥ ३ ॥ ॥ पुद्गल द्रव्य लक्षण ॥ ॥ दोहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूरण गलणन सभावधर, अस्तिकायमूर्त्तिक, फरसे वरण रसगंधमय, पुद्गलद्रव्य सु ठीक ॥ ४ ॥ ॥ अथ पुगलगुणपर्याय कथन || ॥ सवैया इकतीसा || जाके मूल गुनगनि रूपी अचेतन भनि अस्तिपन आदि ae आठे ओघ गुन हे, पुरनगलनरूपी अनुकौ विसेस गुन है असाधारन के उरमाही जैन हे ||; हानिवृद्धिषटविध मूल परयाय याके द्वणुक प्रमुखखंध परजायआने है, एकवर्ण एक गंध एक रस द्वै फरस पांचो गुन याके मूल परीयैयजाने हे ॥५॥ || पुद्गल द्रव्य सरूप ॥ ॥ दोहा ॥ अन्यसंधसौ मिलनकी, यामे सकति सदाय, याते परनासी प्रगऊ, अस्तिकाय कहेवाय. ॥ ६ ॥ १५ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy