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ट्रव्यप्रकाश.
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कालद्रव्य उपचारहे, पंच अस्तिकी चाली; ओर कथन सत्र शास्त्रके, सो उपच्यारि भालि. ॥६५॥
॥ हेयउपादेय विवेचन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ उतपाद व्यय ध्रुवपनै जीवसम एमी अगुरुलघु वै परजायभी समान हे, अरूपी अखंड अज अनादि अनंतसंत अनमिल औरसे तीलोकके प्रवानहे; इत्यादिक गुनसोस मान तौभी ए अजान तातै ध्यानध्येयमां ध्येय ज्ञानवान् है, अनंत त्रिगुणसाथ देवचंद गुणनाथ ध्येय उपादेय ब्रह्म ज्ञानको निधान हे ॥ ६६ ॥ ॥ इति द्रव्यप्रकाशको प्रथम अधिकार ॥
॥दोहा ।। वरने च्यारो द्रव्यपर, जेह अरूप अजान; अब वरनौ संक्षेपसौ, रूपी जड परमान. ॥ १ ॥ ॥ अथ आतमाकरमयोगको दृष्टांत ।।
॥ सवैया इकतीसा ॥ जैसे नीरनिधि नीर समीरकी भीर भेती उछरे उतंग अति चंचलता विससे, डौलतनदीकोनाथ चपलकलोलसाथ रंचनसु थिर होइ आकुलता मिलसे; तैसे ए चेतनभूप अमल अडोलरूप अखंड अनंत ज्ञान सुद्धर समेवसे, सोइ जीव कर्म प्रेयों मोहके पवन धेर्यो फेर्यो फीरे ममतासो क्षोभ भाव क्रोध सौ ॥२॥
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