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द्रव्यप्रकाश
॥ शिष्य प्रश्न ।
॥ चोपाई ॥ शिष्य कहे तुम काल प्रवाना, मनुज खेतमित करो सुजाना; उत्पादादिक सब जगमाही, समैसमैमें क्युं कहवाही॥६१॥
॥ अथ गुरु उत्तर ॥
॥ सवैया इकतीसा॥ तब आचारिज एक गहि जिनमत टेक कहे एसि वात परवान पक्ष गहिकै, नरखेत समे मितकालमांही तीनो हीहि छहौ द्रव्यमांही नीत देखे ज्ञान लहीके; ताते उपदेशमाहि कहे जिन वैन एसे गहै गनधार सरधान सुध वहिकै, देख्यो युं अनंत जीन देखेगे अनंतफुनि देखत हैभी अनंतज्ञान सरदहिके ।। ६२ ।।
॥ अन्य आचारिज वचन ।।
॥ सवैया इकतीसा ॥ कहे और गुरु काल द्रव्य हे असंख्य थिर रेणुंकए लोकपरदेश परवान है, एकएक रेणुकमै अनंत प्रगट होत समय सरब समे काज परधान है। निज निज काज करे अनमिलपने सदाय ते अस्तिकायको कदापि न कहान हे, अनंत अतीत काल वेतो अनागतकाल अप्रदेशी परिणामी कालद्रव्य मान हे ॥ ६३ ॥
॥ निश्चयकालमरूप कथन ।।
॥दोहा॥ मनुज खेतमित जो कह्यो, सो व्यवहारीकाल; निहचे पांचो द्रव्यकी, कालवृत्तना चाल. ॥ ६४ ॥
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