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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्रव्यप्रकाश. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ ॥ अन्यमति प्रश्नोत्तर || ॥ सवैया इकतीसा || कालवादीकी उकती गत थिती रीत इत कालके अधीन दीन हीन मत पीन है, बुध कहे कालगुन नव पुरातनपन दोय क्रिया एक द्रव्य कबहु न कीन है; पंचभूत वादी कहे गति वाउ भूत छति थितिरीत समसत्त प्रथवी अधीन हे, बुध कहे वायुभूमि जीव yere army बल और याको बल तौन बीन है ॥ ५७ ॥ ॥ दोहा ॥ या ते पुद्गल जीवको गति थिति हौत सदीव; " धर्म अधर्म दो क्रयजड, इनको ज्ञाता जीव ॥ ५८ ॥ ॥ कालद्रव्य लक्षण ॥ ॥ दोहा ॥ वरतन परणति जासु नित, क्रियापरा परवान; नव जीवनको हेतु जो, कालद्रव्य सो जान. ।।५९ ॥ ॥ कालद्रव्य गुणपर्याय कथन || ॥ सवैया इकतीसा ॥ For Private And Personal Use Only अस्ति आदि अष्टगुन युंत अप्रदेशी नित समेकौ मीलन विनुं नाहि अस्तिकाय है, वरतना हेतुए विशेष गुन कहे जिन अगुरु लघुत्व भेद याके परयाय हे; आवली प्रमुख पर परजाय हे अनंत उतपाद व्यय ध्रुवमंत कही वाय हे, सो तो द्रव्य एक कहे समय अनंतवंत नरखे नमित वरतनाको उपाय हे ॥ ६० ॥ १५
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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