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द्रव्यप्रकाश.
॥ अथ शिष्य प्रश्न ॥ || सवैया इकतीसा ||
धोकाकाश मान अधरमताकेमान असंख्य प्रदेशी एक जीव युं अनंत है, लोकालोक नभसम पुद्गलअणु द्रव्य कालके सुछसमें वरतना अनंत है; आधार लोकाकाससो प्रदेश ते असंखराशि वास यान तुछ अरू आधेय महंत है, ताते कैसे ए समाय कहो सामी को उपाय द्रव्य रिती थिति कीतौ हम मन भ्रांति है ॥ ५४ ॥
॥ अथ गुरु उत्तर || || सवैया इकतीसा ||
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जैसे एक जलधाउं तदमित जलभृत तामे तदुचित्त सरकरा गलि जाय है, तामे लुणका करकौ गारिडारे बारडारे तामे सूइको समूह षोभे ठहराय है; जैसे एक गउंमांहि पांचौ वस्तु टहराहि जलादिक तहकीक प्रगट दीसाय है, तैसे लोकाकाशमांहि पाचौ द्रव्यमाय जाहि अवगाह गुनकी समकि कहयाय है ।। ५५ ।।
|| अन्यमति प्रश्नोत्तर कथन || ॥ सवैया इकतीसा ॥
अन्यमति पक्ष गहे है यही बात सब धरम अधर्मं द्रव्य जगमांही नाही है, परतक्ष दीसे नाही अनुमान ज्ञान नाही उपमान शब्दांही एती न कहाही हे ताते जैन कहे न अनुमान लेकै यथा इंद्री अगृहीत भाव जगमाहि होही हैं, गतिहेत सो उहेत दधिवृत घृतवत् तैसे अरूपी नित्य द्रव्य जगमांहि है. ॥ ५६ ॥
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