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द्रव्यप्रकाश.
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है साधारन गुन सतपदको कहन है, अचेतन रूप विनु तदुभय गुन कह्यो गुनपर्याय द्रव्य ज्ञानयोग नहै ॥ ४८ ॥
॥ द्रव्यपाय कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ गुनके विकारपर जाय कहे जिनराज स्वभाव विभावरूप ताके दोय भेद है, सुधपरजायतो अगुरु लघुके विकार हानि वृद्धरूप जाके बारह विभेद है; अनंत असंख्य संख्य भाग हानि गुणहानि एतौ छहौ हानी छहौ वृद्धियुं अखेद है, एतौ परयाय छहौ द्रव्यको समान भाखे उरि परयाय गुन सुनन उमेद है ४९॥
॥विभावपर्याय कथन ॥
॥ दाहा॥ खंध थान गत भेद ले, कहनो वचन विलास, परपर्याय धर्मादिके, ज्युं घटमठ आकाश. ॥ ५० ॥ ॥ आकाशदुविध कथन ॥
॥ दोहा ॥ सो आकाश द्वैविध भयो, यद्यपि है एक खंध, लोक अलोकनीके सबे, कहो लक्षन संबंध. ॥ ५१ ॥ ध्रुव उत्पादन अंतजत, जहां एक आकाश, सादि अनंत अपार जड, सो अलोक परकास. ॥५२॥ जामें गुणपर्याय जूत, छहौ द्रव्यको वास, आप असंख प्रदेशधर, सोहे लोकाकाश. ॥ ५३॥
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