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द्रव्यप्रकाश
॥ गुरु उत्तर कथन ॥
॥दोहा॥ जैसे जलचर जीवकुं, चलनसहाई नीर; तैसे पुद्गल जीवको, चलन सहाए वीर ॥ ४४ ॥
॥ अधर्म द्रव्य लखन ॥
॥दोहा ॥ अधर्म द्रव्य जो थिर करे, जीव पुद्गलको साहि, मध्य दीह ग्रीषम समे, ज्यु पंथी तरुछाही. ॥ ४५ ॥ ॥ आकाश द्रव्य लक्षण ॥
॥दोहा॥ जो देवें अवगाहना, सो आकाश कहेवाय, गुणपरजयजुत जा समें, पांचौ द्रव्य समाय. ॥ ४६॥ ॥ अथ सामान्य अष्ट गुण कथन ॥
॥ कवित ॥ पहिलो अस्ति सभाव वस्तु सभावता बीय गिन तीजो द्रव्य सरूप गुन चतुर्थ परमेय परमान पंचम अगुरू लघुत्व छठो सप्रदेश कहीजे, सत्तम चेतनहीन आठमो अरूप लहीजे, ए आठ द्रव्यके जाति गुन कदाकाल नाविभचरै, धर्मादि द्रव्यत्रय नीत्य ए आठौं गुन नित्यप्रत्ये धेरै ॥ ४७ ॥ गति हेतु कह्यो धर्मथित हेतु है अधर्म अवगाह दैन तो अकाशहीको गुन है तिनौ ए विशेष गुन कहै तिनौ द्रव्यहीके अब गुन तीनवीध कहिवेको मन है, द्रव्यको विशेष गुनयहै असाधारन
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