________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दत्यप्रकाश
स्वभाव द्रव्य, भूष न कहावे बहु कंचन सकल है, तम पक्ष राहू संग चंद्र राहु योग भयो चंद्र कहा तम होइ नित्य जो विमल है॥ ३४॥
॥ संसारीआत्माकथन ॥
॥कत्रित ।। पर पानति निज मानी गुन निति पर जाने गगाटिक संजोग आत्मपर भावहि टाने, रागी गेपी अहं पुहु विकला मल मिलीयो करे करमको बंध फीरे जोहल फलीयो जिम भूत छाय जुत पुरुष निज भूतभावको इक कहे त्यो जीव एह अज्ञानवसि विविध कर्म बंधन लहे ॥ ३५ ।।
॥दोहा॥ चेतन परके जोगसौ, परको करता होय, या ते परको पर लखे, तजे अकतों सोय. ।। ३६ ॥ ॥ निजउपादेय परहेयकथन ॥
॥दोहा॥ चेतन विन जे ते दरव, ते अशुद्ध परहेय, सुद्ध चेतना संजुगत, नित्य जीव आदेय. ॥ ३७ ॥ पंच द्रव्य जड हेय है, तोमी कहीये जेयः नातै वखानो प्रगट, स्याद्बाद नय लेय. ॥ ३८ ॥
॥अथव्यलक्षण ॥
॥दोहा॥ उपजे विनसे थिर रहे, यह सद्लक्षण जान; सतलक्षनकुं जो धरे, सोई द्रव्य परवान. ।। ३९ ।।
For Private And Personal Use Only