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दव्यम काश.
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निक्षेप नय जाके तेज आगे अस्त ऐसो निज देव सुद्ध मोक्षको
उपाय है ।। ३० ।।
॥ अथ आत्मा मुक्तरूपवरणन ॥ ॥ दोहा ॥
बंधोदय दीरण प्रमुख, ए सब पुद्गल युक्त; इनसो पर निज तेजमय, मैंहु कर्म विमुक्त. ॥ ३१ ॥
॥ आत्माधिरभावनाकथन ॥ ॥ सबैया इकतीसा ॥
पवन के थंभसौ सुभाव थीर रहे जल तेसो ज्ञाता जीव होइ करम वियोगसौ, जे ते ज्ञान नाथके लगेहे परभाव साथ तेते परजानि दूर करे ज्ञानयोगसौ, स्वयंभू चेतनरूप अमल अनंत भूप ताको थिर ध्यान धरो त्यागना तो लोगसौ, आस्रव विनास होते संवरसरूप भयो ताको बंध राखे कौन करम अभोग सौ ॥ ३२ ॥
॥ दोहा ॥
वरणादिक परभाव ए, है सब तनके अंग;
नव नव रंग गहे फकिक, पड्युं उपाधिके संग ॥ ३३ ॥
|| आत्मफटिकदृष्टांतकथन ॥ ॥ सबैया इकतीसा ||
जैसे मणिफटिक सभाव निरमलरूप तैसै थिर चेतन सदाइ निरमल है, तौभी राग दोष मोह आपनी उपाधिसेती वस्यो हे संसार में अज्ञान सौ विकल है, तौभी तजै नांहि कब अपनो
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