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द्रव्यप्रकाश.
॥भेदज्ञान माहातमकथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ जे ते केई भव्य जीव लीन ज्ञानमे सदैव करमके बंधको उखारे एक पलभे, ताको मूल हेत एक भेदज्ञानहीकी ढेक छेकते विवेकको विचार जोयुं दीलमे; बंधको विलासमे मगन जेऊ आलु जाम परे कर्मबंधमाहे रूले जगजालमे, तेतो भेदज्ञान वितुं निहचे पिछान्यो देव करमको गाढवाढे अज्ञानकी चालमे ।। २८ ॥
॥ अथ ज्ञानविलाम कथन ॥
॥ सवैया इकनीसा ।। आपा पर भेद लीन आतमा स्वज्ञान पीन करमके पुंजको न आने निज देसमे, वसि निज गुनास भासे आप रूप रास विराजे अखंडरूप आतम प्रदेशमे अनादि अज्ञानके वढावसि गड्योहे ज्ञानभान जैसे दबि रह्यो बढाके प्रवेशमें, तैसे ए पुराणदेव तत्त्वको पीछाने नाही करमको करतार भयो परदेशमे ॥ २९ ॥
॥ आतमाअकर्ताकथन ।।
॥ सवैया इकतीसा ॥ सहज स्वभाव अथ गुरुके वचन सेती जान्यो निज तत्व तब जाग्यो जीवराय है, भेतो परदव्य नाहि परद्रव्य मेरो नाही ऐसी बुद्ध भासि तब बंध कैसे थाय है; देखी जानी गहो तुम परम अनंत पर जाके पर आगे और पद न मुहाय है, प्रमाण
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