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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. || भेदज्ञान उभयमूल नयवरणन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ सुध नय निहचे जधारथ सरूपी सत्य व्यवहार क्रिया नय ताते विपरीत है, भेदज्ञान कारन न होय विवहारनय ज्ञानके निहास्ये याको त्याग वैही नित हे; वस्तुको पीछाने निज शुद्धिको विशुद्ध गने शुद्ध नैसरूप एसो सम्यक्को मीत है, रतन त्रितयको सामी देवको अंतरजामी एसो शुद्धनयसो हमारी थीर प्रीत है ॥ २३ ॥ ॥ पुनः चंद्रायणः ॥ बाज लिंग यह नय विवहारा, तत्त्वहीन किरिया आधारा; गहण जोग नय शुद्ध कहत विवेकमे, त्यागयोग विवहार ज्ञानकी ढेकमे ।। २४ ।। ॥ शुडनय महिमा ॥ ॥ दोहा ॥ परविमुक्त यह आतमा, चिनमय चंदसमान, आदि मध्य नहि अंत तसु, द्योतक निहचे जान. ॥२५॥ || शिष्य प्रश्न ॥ ॥ दोहा ॥ को हेय व्यवहार नय ज्ञानहीन पर गेह, तो कह कैसे वरणयो, जिनशासन मे एह ॥ २६ ॥ ૭ ॥ अथ गुरुङत्तरकथन ॥ || सोरठा !! जाणण आतम तत्त, निश्वे नय व्यवहार है, तीर्थ प्रवत्ति निमित्त तिण, दोनय जिनवर कद्या. ॥२७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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