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द्रव्यप्रकाश.
|| भेदज्ञान उभयमूल नयवरणन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥
सुध नय निहचे जधारथ सरूपी सत्य व्यवहार क्रिया नय ताते विपरीत है, भेदज्ञान कारन न होय विवहारनय ज्ञानके निहास्ये याको त्याग वैही नित हे; वस्तुको पीछाने निज शुद्धिको विशुद्ध गने शुद्ध नैसरूप एसो सम्यक्को मीत है, रतन त्रितयको सामी देवको अंतरजामी एसो शुद्धनयसो हमारी थीर प्रीत है ॥ २३ ॥
॥ पुनः चंद्रायणः ॥
बाज लिंग यह नय विवहारा, तत्त्वहीन किरिया आधारा; गहण जोग नय शुद्ध कहत विवेकमे, त्यागयोग विवहार ज्ञानकी ढेकमे ।। २४ ।।
॥ शुडनय महिमा ॥ ॥ दोहा ॥
परविमुक्त यह आतमा, चिनमय चंदसमान, आदि मध्य नहि अंत तसु, द्योतक निहचे जान. ॥२५॥
|| शिष्य प्रश्न ॥ ॥ दोहा ॥
को हेय व्यवहार नय ज्ञानहीन पर गेह,
तो कह कैसे वरणयो, जिनशासन मे एह ॥ २६ ॥
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॥ अथ गुरुङत्तरकथन ॥ || सोरठा !!
जाणण आतम तत्त, निश्वे नय व्यवहार है, तीर्थ प्रवत्ति निमित्त तिण, दोनय जिनवर कद्या. ॥२७॥
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