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द्रव्यप्रकाश
स्याद्वादको सहाय है, द्रव्य अभेद नय परजाय भेदनय सगनैगमादिनै असंख भेद पाय है; द्वादशांगी सूत्रसार पठावै सपरिवार साधे शुद्ध कारज जे मोक्षके उपाय है, पंच महावत पाले दोष सबहिको टाले पृजनीक भव्यजीको ऐसे उपाध्याय हे ॥१४॥
॥ अथ साधु स्तुति ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ आत्मारामके आरामी निज सुख वीसरामी पुन्यके अकामी पापष्टिसौ न काज हे, इंद्री सुखकी न आस रहे जगसी उदास परिग्रह हीन भी अजाचि महाराज है, मिथ्यास्या विमुख निज ज्ञान भावही के रुख मोक्ष सनमुख सिद्धसुखके समाज है, करम उदिकसेती करत हे क्रियाकर्म सत्तावीस गुणधारी ऐसे मुनिराज है ॥ १५॥
॥दोहा॥ अविरत आदि अजोग, लगी यहे सिद्धको हेत, जो गुन जहां पुरन हुवे, सोइ सिद्धको खेत. ॥१६॥ ॥अथ मिथ्यादृष्टिहेय कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ आपको न जाने परभावहिको आपा माने गहिके एकांत पक्ष माच्योहे गहलमे, भरममे परयो रहे पुन्यकर्महिको चहे वहे अहंबुद्धिभाव थंभ ज्युं महलमे; कुगतिसौ डरे सद्गतिहिकी इछा करे करनीमे थीर होके चाहे मोक्ष दीलमे, स्यादवाद भावविनु एसो जो मिथ्यात्व भाव हेयरूपी कडो ज्ञानभावके अदलमे ॥१७॥
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