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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ द्रव्यप्रकाश ...... ॥दोहा॥ दर्वितस्तवनाना थकी, करतां पुन्यप्रकाश, आतमके गुन गावतां, केवलज्ञान विलास. ॥११॥ ॥ अथ भावस्तवनं ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ लोकालोक भासक अनंत ज्ञानदृष्टि जाकी वीरज अनंतसुख उषेरै कर्मकंदजू, चरण अनंतवर लोकालोक भावधर पुन्य पापसौ व्यतीत सुध सुख वृंदजू ; वेद कौन भेद तीनौ जोग कौन खेद तहां चेतन प्रकाश भयो कर्मसौ अफंदजू; ऐसे जिनराज निज ज्ञानमे बिराजमान अमल अखंड नित ध्यावे देवचंदजू . ॥ १२ ॥ ॥ आचार्यस्तवनं ॥ ॥ सवैया बतीसा॥ पंचाचार पाले निज ब्रह्मको संभाले भाले-टाले परभाव सब शुद्धभाव भावे हे, परमधरम गहे समता समाव वहे रहे न सराग चित्त नित्त लिव लावे हे; दुविध दयाके धार कीनो नारि परिहार परिग्रह दूर डारि नीरलोमी दावे हे; पख्याधि दूर टारे रागद्वेष मोह वारे ऐसे आचारज जिको देवचंद ध्यावे हे ॥ १३ ॥ ॥ अथ उपाध्याय वरणन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ नित्य सो अनित्यरूप एकानेक कोशरूप सदसद्भाव For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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