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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश उदासी है, आतमके विसरामी ज्ञानके अंतरजामी बाधासौ विरमिनित राधाधामवासी है; जालसौ जगतजाके माल सब मैल जैसो अमल अखंड निज ब्रह्मके विलासी है, एसे समकीत धारी शुद्ध नयके विचारी वंदतहे देवचंद ज्ञानके प्रकाशी है. ॥७॥ ॥ अथ देशविरति वरणन ॥ ॥सवैया इकतीसा ॥ अभक्ष्यके त्यागी हे परम रस यागी एसे परसौ निरागी जिनधर्मके विनीत हे, आत्मिक सुख लहि समतासु धीर गहि विषय कषाय मोह रससौ वितीत हे; परम धीरज धरि आत्मीक बल करि समकित यीर करि मिथ्यासौ अजीत हे, मिष्ट मित थोव भाषी सिद्धसुख अभिलाषी इकवीस गुण धारी श्रावक पुनीत है ॥८॥ ॥दोहा॥ साधक शिवको साधुमुनि, ताके भेद चियार, जिनवर आचारिजप्रवर, उपाध्याय अनगार ॥ ९॥ ॥ अहंतकीद्रव्यस्तवना ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ जाकी देहदुति अति सोमित अनंततेजु जाकी तन चतुराई नाही थांन ओर हे, ताही जिनराजके बचनको विलास मानो, शिवपुरा राह शुद्ध अनुभष कोर है। जाके अतिसे अमंद, वंदे देवदेवी वृंद जाको धर्मशासन परम सुख ठौर हे, जाहीके दरससेति सुखको परसौहत ऐसो जिन देवचंद विश्वसिर मौर है ॥१०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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