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१०.४८
साधुपद सझ्झाय.
पर्याय अनंतोमां आत्मधर्म संबंधित आत्मत्व शक्तिने फोरaa अनंती कर्म वर्गणाओमां एकेकी वर्गणा दीठ ज्ञानादि गुणना अनंत पर्याय वर्गणा दीठ फेलावीने खपावे, निस्सेस सर्वथा कर्म नाश करीने अंतर्मुहूर्तमां सिद्धे जाय विराजे ते आशये सिझाय कर्ताये पर्याय गुण परिणामें कर्तृतारे ते निज धर्म प्रसिद्ध-सिद्ध सूधी पोहचावी चुका. ए बे गाथा-यांमे स्वरूप ग्राहक आत्मारी शुद्धता लिखी. हिवे परपरिणमन आत्मारी बात लिखे.
परभावानुगत वीरज चेतनारे, तेह वक्रता चाल;
करता भोक्तादिक सवि शक्तिमारे, व्याप्यो उलटो ख्याल ॥ सा० ॥ ३ ॥
परभावानुगत वीरज चेतनारे, परभाव नाम क्रोध मान माया लोभ राग द्वेष मोह मिथ्यात्व इत्यादि स्वरूप प्रापक आत्मारे विषे नथी, परभावमे प्रवर्तते आत्मारे विषे तिगरे विषे अनुगत नाम प्राप्ति हुइ वीर्य चेतना एतले परभावरे विषे आत्माये वीर्य पराक्रम फोरव्यो. चेतनारे विषे वीरज फोरव्यो तिवारे आत्मा गहिलो दुवो भांग पीधी ठहिरि तिवारे जे आत्मा करे ते लिखे यथाममुक्तिः ॥ परपरणमन विभावे आतम अजा कृपाणी न्याये मिथ्य त्वादि हेतु आतम आपही बंब उदीरे आपही उदये सुख दुःख वेदे गत्यागति थिति भीरे ए जे चालां छे ते स्वरूप प्रापक आत्मारी नथी तेह वक्रता चाल आत्मारी वक्रता चाल ठहिरी, वांकी चाल ठहिरी. कर्त्ता भोक्ता तिवारे आत्माने विचारी जोतां थकां
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