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साघुपद सझाय.
१०४७
दूजी वर्गणा कही जे इणेहि प्रकारे अनन्ता जे त्रिप्रदेशी स्कंधतिपरि समान जातीय पणाहुति विजी वर्गणा. इणे हीज प्रकारे एकेक परमाणु वृद्धि करनें वधावणें करनें अनंता जे संख्यातप्रदेशी स्कंध तिणारे समान जातीयपणा संख्यात वर्गगा कहिजे, इण ही प्रकारें असंख्यातवर्गणा जाणवी, अनंतपरमाणु वेकर निष्पन्न इस्या जे स्कंध तिके समान जातीयपणामूं अनंतवर्गणा कही जे, इणही प्रकारे अनंतानंतवर्गणा कहीजे, इणां सर्व वर्गणां प्रतें उल्लंघने अभव्य हुंती अनंतगुणा सिद्धरे अनंतमें भाग जे परमाणु तिणें करी नीपज्या जे स्कंध ते उदारिक शरीर लेवा जोग्यवर्गणा दुवे ॥ १ ॥ उदारिक वैक्रिय सूक्ष्म २ वैक्रियसों आहारिक सूक्ष्म ३ अहारक तेजस सूक्ष्म ४ तेजससूं भाषा सूक्ष्म ५ भाषासों श्वासोश्वास ६ श्वासोश्वास मन ७ मनसूं कर्म ८ ओ संबंध टीकामें वणोहे पण गौरव भयात्त्याज्यम् पिग पूरी १४ राजमें सूइनीं अणी टिके एतो मोडं क्षेत्र पर ही असंख्यातगुण क्षेत्रही नही बाकी खाली न रह्यो पछी जे जे कर्म दलीयां जीणक्षेत्र प्रत्यइ भोगव खपावणा तिण तिण क्षेत्र प्रत्यइ भोगवने कर्मदलीयां अवशेष आयु स्थिति अवशेष रही ते प्रमाणे ७ तेही कर्म प्रकृतिनां अवशेष दलियां राखे, तिम कोइ मिथ्यात्वी जीव अंतगड केवली थइ मुक्त जाववावालो छे ते निचे शुद्ध क्षायकीज हुवे तेने अवशेष एक अंतर्मुहूर्त आयुस्थिति रही छे ने एटला कालमा सात कर्म प्रकृति तेमां एकेकी कर्म दीठ अनंती अनंती कर्म वर्गणा खपाववी छे ते टाणे आत्मा आत्मत्व धर्मों सहित छतो आत्मा अनंत बली छतो पोताना अनंत वीर्यनी शक्ति पोताना अनंत ज्ञानादि गुण तिभज
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