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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुपद सझ्झाय. mma वर्गणाना एक एक पर्याय दीठ ज्ञान पर्याय पहिलावीने पर्याय सहित कर्म द्रव्यनो नाश करे, पणेरे ते पणे आत्मा वत्त प्रवत्र्ते ते गुण शुद्ध नाम ते आत्मा शुद्ध आत्मिक स्वरूपतावच्छेिदिकावच्छिन्न शुद्ध निर्मळ आत्मिक स्वरूपता आत्मारे विषे रह्यो जे आत्मत्वधर्म तेहने विषे रही आत्मता आत्मत्वपणोंतिणे करने अवछेदिक रहित नही एतले आत्मिक स्वरूतायें करने सहित तिणे करीने अवछिन्न व्याप्ततदाकारपणे छे तेमां प्रवर्तीज रह्यो छे. आत्मिकशुद्धगुण छे. पछे पर्यायगुणतामें कर्ततारे ते पर्यायना जे गुणज्ञान पर्यायना जे गुण ते एकेक गुण दीठ आत्मारे कतृतापणो छे कर्त्तापणो छे. ते निजधर्म प्रसिद्ध नाम आत्मत्वधर्म ते आत्मारे विषे तेहने थये आत्माने विष पसिद्ध छे. जिम केवली केवल समुद्वात करते चोथे समये अंतरालपूरते १४ राजलोकमें सातकर्म नी तिम एकेका कर्मनी अनंती अनंतीकर्मवर्गणा, वर्गणा लक्षणमाह ।। पंचमकर्म ग्रंथनी गाथा ।। इगदुगुणू गाइजा अभवणंत गुणअणूरखंधाउरलोचियवग्गणाउ ॥ इत्यादि व्याख्या अणू शब्दः प्रत्येक संबध्यते अणू शब्द छ ति को इग करे एकेक शब्द देइ मिलावणो ततः केवलोअणुरेवाणुकः परमाणु रित्यर्थः तिणहुंति इकेलोजे केवलदृष्टिए एकनो दूजो न हुवे ते अणु कहिये आशु तेहिज अणुक कहि जे तिण अणु कने परमाणु कहि जे, इह जगतने विषे समस्त जे लोकाकाश प्रदेश तिणांमांहि जे एकाकी परमाणु विद्यमान छे छतां छे तिणः परमाणु बारो समुदाय समान जाति एकवर्गणा कही जे, इण हीज प्रकारे अनंता जे हि प्रदेशी स्कंध 'तिणारे समान जातिपणा हूंती १ परमाणुओ. २ तेमना. For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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