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साधुपद सझाय.
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वीर्य आत्माए फोरवीने मिथ्यात्वादिक आत्मानुगत कीना आत्मारे विषे कीना आत्मारे विषे तो ए नहता अने आत्मा कीना सवि शक्तिमां रेते आत्मशक्तिए करने कीना भोगव्या पिण आत्माहीज तिवारे कर्ताही आत्मा भोक्ताही आत्मा ठहिर्यो यदुक्तमागमे यः कर्त्ता कर्म भेदानां, भोक्ता कर्म फलस्यच, संसर्त्ता परिनिर्वाता, सह्यात्मा नान्य लक्षणः १ व्याप्यो उलटो ख्याल के तो स्वरूप कर्त्ता आत्माहीज छे के विरूप कर्त्ता पिण आत्माहीज ठहियों आत्मा सागीरो सागीहीज तिणे आत्माहीज उलटो ख्याल खेल्यो, आत्मारे करवा योग्य नथी ते आत्माए कीनो तेथी उल्टो ख्याल ठहियों ॥
क्षयोपशमिकऋजुताने उपनें रे, तेहिज शक्ति अनेक
निज स्वभाव अनुगतता अनुसरेरे, आर्यव भाव विवेक ॥ सा० ॥ ४ ॥
हिवे तेहीज जीवने विषे अनंता भव भ्रमण करतां थकां अनंतो काल व्यतीत हवो छते ते जीव जाते भव्य हुतो तेथी क्षयोपशमक क्षयोपशम भावे “ खओवसमियं असंखवारहोइ इति सिद्धांत वचन प्रमाणात् " ते असंख्यातीवारमां प्रथम विरियां क्षयोपशम सम्यक्त्व पाम्यां थकां वक्रता चालतो मिटि ऋजुता ने उपनेरे सरळता उपनी तेहिज शक्ति अनेक ते जीवनी हीज अनेक शक्ति छे, तेहिज आत्मा शक्ति ए करने निज स्वभाव आत्मानो स्वस्वभाव ज्ञान
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