________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४०
साधुपद सझ्झाय.
इणहीज एकांत पक्षनें ग्रहण करी तिमहीज सप्तभंगी थकी स्यादस्ति भंगो ग्रहण करीने अद्वैतपक्ष स्थापन को छे ते एक नयात्म एक भंगात्मक छे. आत्मा तुपुष्करपत्रवन्निर्लेपः प्रकृतिः की इति सिद्धांतः ए पक्षे हीज सिद्ध समान सत्पद 'मेरो दुसरो नथी, ओर एक आत्माही राम हे, ए कथन छे परं सत्पदनो जैनमतने आश्रये एक नय एक भंगीन कथन छे. सर्व नयाश्रयी नथी, सकथं भव्य १ अभव्य २ जातिभव्य ३ ए तीन जीवनी जाति छे. तेमां एक भव्य जीव जाति आश्रयी ए कथन छे. इहां जैन न्यायसम्मतित्ती ७५००० प्रकरण, तेमां हजार च्यारेक म्हारो वांचेल छे तेनुं आइ लिखत लिखवे अर्थ वधी जाय इत्यलम् . साधक साधज्योरे निज सत्ता इकचित्त ए बे पदोमें विरोधाभास छे ते किंचित् लि, परं हुं महा निर्बुद्धि वज्रठार छु जैनरोजिंदो छं. म्हारो माजनो अतिमंद छे, सिझाय कर्तानो मोटो माजनो छे, परं सिद्धांत वाक्यार्थ विरोधाभास कथन लक्ष लक्षण जैन विरुद्ध . जाण्या पछी न लिखवू ते अनंत जिननुं चोर थावु छे, तेथी लि. चेतन निर्मल मेलो थाय, मेलो उजलो थाय, ते बे हेतुए थाय. तत्र हेतु लक्षणमाह ॥ हिनोति प्रापयति साध्यमर्थमितिहेतुः साधवायोग्य कार्य तिणप्रतें प्रसिद्ध करे ते हेतु कहीजे. तद्हेतुस्त्रिधा सद्हेतु; अद्हेतुः । सद्सद्हेतुश्च॥ यत्सत्वे यत्सत्वमित्यन्वयः जे छते जे छतूं ते अन्वय अन्वयहेतुसत्वेचेतनासत्व-चेतनासत्वे परमात्मतासत्वं परमात्मापणुं छतुं छे तद्भवेतदभावोव्यतिरेकः चेतना. १ एहन २ तेमज ३ भारो ४ बीजो ५ त्रण ६ अहीं.
For Private And Personal Use Only