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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०३८ साधुपदस्वाध्याय. अपवादें पर वंचकतादिकारे, ए माया परिणाम उत्सर्गे निजगुणनी वंचना रे, परभावे विश्राम ॥ सा० ॥ ५ ॥ सावे वरजी अपवादें आर्जवी रे, न करे कपट कषाय आतमगुण निज निजगति फोरवे रे, ए उत्सर्ग अमाय ॥ सा० ॥ ६ ॥ सत्तारोध भ्रमणगति चारमें रे, पर आधीनें वृत्ति वक्रचालयी आतम दुःख लहे रे, जिम नृपनीति विरत ॥ सा० ॥ ७ ॥ ते मा मुनि ऋजुतायें रमे रे, वमे अनादि उपाधि समता रंगीसंगी तत्त्वना रे, साधे आत्म समाधि ॥ सा० ॥ ८॥ मायक्षयें आर्जवनी पूर्णता रे, सवि गुण ऋजुतावंत पूर्व प्रयोगें परसंगीपणो रे, नही तसु कर्त्तावंत ॥ सा० ॥ ९ ॥ साधनभाव प्रथमयी नांपजे रे, तेहिज थाये सिद्ध द्रव्यत साधन विघन निवारणारे, नैमित्तक सुप्रसिद्ध ॥ सा० ॥ १० ॥ भावें साधन जे इक चित्तथी रे, भाव साधन निजभाव भावसिद्ध सामग्री हेतु ते रे, निस्संगी मुनि भाव ॥ सा० ॥ ११ ॥ हेय त्यागयी ग्रहण स्वधर्मनो रे, करे भोगवे साध्य स्वस्वभाव रसिया ते अनुभवे रे, निज सुख अव्याबाध || सा० ॥ १२ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . १७ निःस्पृह निर्भय निर्मम निर्मला रे, करता निज साम्राज देवचंद्र आणायें विचरता रे, नमिये ते मुनिराज ॥ ॥ इति श्री देवचंद्रजीकृत स्वाध्याय For Private And Personal Use Only सा० ॥ १३ ॥ संपूर्णमगात् ॥
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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