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अष्ट प्रवचन मातानी सझायो.
अप्रमत्त मुनि श्रुत तत्त्व पूछवा, सेवे जासु अभंग | सुगु० ॥ १० ॥ सहहणण आगम अनुमोदता, गुणकर संयम चालि | सुगु० ॥ व्यवहारे साची ते साचवे, आयति लाभ संभालि | सुगु० ॥ ११ ॥ दुक्करकारीथी अधिका कहे,
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बृहत्कल्प व्यवहार । सुगु० ॥ उपदेश माला भगवई अंगने, गीतारथ अधिकार || सुगु० ॥ १२ ॥ भाव चरण स्थानक फरस्या विना, न हुवे संयम धर्म । सुगु० ॥ ते श्याने जूठ ते ऊचरे,
जे जाणे प्रवचन मर्म | सुगु० ॥ १३ ॥ यश लाभे निज सम्मत थापवा,
परजनरंजन काज | सुगु० ॥ ज्ञान क्रिया द्रव्यत विधि साचवे, तेह नहि मुनिराज ॥ सुगु० ॥ १४ ॥ बाह्य दया एकांते उपदिशे, श्रुत आम्नाय विहीण । सुयु० ॥
રક
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