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अष्ट प्रवचन मातानी सइझायो.
१.०१७
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अभ्यासी अभिनय श्रुतसारना, अविनासी उपयोग ॥ सुगु०॥५॥ द्रव्य भाव आस्त्रव मल टालता, पालता संयम सार । सुगु० ॥ साची जैन क्रिया संभालता, गालता कर्म विकार ॥ सुगु० ॥ ६ ॥ सामायिक आदिक गुण श्रेणिमा, रमता चढतेरे भाव । सुगु० ॥ तीन लोकथी भिन्न त्रिलोकमां, पूजनिक छे जसु पाय ॥ सुगु० ॥७॥ अधिक गुणी निज तुल्य गुणीथको, मिलता ते मुनिराज । सगु०॥ परम समाधि निधि भवजलधिना, सारण तरण जहाज ॥ सुगु०॥८॥ समकितवंत संयम गुण ईहता, ते धरवा असमर्थ । सुगु०॥ संवेग पक्षी भावे शोभता, कहेता साचोरे अर्थ ॥ सुगु०॥९॥ आप प्रशंसाए नवि माचता, राचता मुनि गुणरंग । सुगु० ॥
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