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अष्ट प्रवचन मातानी सइझायो.
॥ ढाल नवमी ॥
॥ रसीयानी देशी ॥ धर्म धुरंधर मुनिवर सल्लही, नाण चरण संपन्न, सुगुण नर । इंद्रि भोग तजी निज सुख भजी, भवचारक ऊद्विझ, सुगुणनर ॥ धर्मः ॥१॥ द्रव्य भाव साची सरधा धरी, परिहरी शंकादि दोष । सुगुणनर । कारण कारज साधन आदरी, धरी सुध्यान संतोष ।। सुगु० ॥२॥ गुण पर्याये वस्तु परखता, शीख उभय भंडार । सु० परिणति शक्ति स्वरूपमा परिणमि, करता तसु व्यवहार ॥ सुगु० ॥ ३॥ लोकसन्न वीतिगिच्छा वारता, करता संयम वृद्धि। मुल उत्तर गुण सर्व संभारता, धरता आतम शुद्धि । सुगु० ॥४॥ श्रुतधारी श्रुतधरनिश्रारसी, बसि कर्या त्रिक जोग ।
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