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अष्ट प्रवचन मातानी सझायो.
छे,
चेतन सत्ता रे परम अयोगी निर्मल थिर उपयोगजी ॥ गुप्ति० ॥ ४ ॥
जावत कंपन तावत बंध छे. अंगेजी ।
भाख्युं भगवइ ते माटे ध्रुव तत्त्व रसे रमे,
माहण ध्यान प्रसंगेजी ॥ गुप्ति० ॥ ५ ॥ वीर्य सहायीरे आतम धर्मनो,
अचल सहज अप्रयासोजी । ते परभाव सहायी किम करे, मुनिवर गुण आवासांजी ॥ गुति० ॥ ६ ॥
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खंत्ती मुक्ती अकिंचनी,
शौच ब्रह्मधर धीरोजी ।
विषय परिषह सैन्य विदारवा,
वीर परम सौंडीरोजी ॥ गुप्ति० ॥ ७ ॥
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कर्म पडल दल क्षय करवा रसी, आतम ऋद्धि समृद्धोजी ।
देवचंद्र जिन आणा पालता, वंदो गुरु गुण वृद्धोजी ॥ गुति० ॥ ८ ॥
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