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१५ आप्रवचन मातानी सरझाया.
प्रणमे नित्यप्रत्ये भावशू, देवचंद्र मुनि तेह, सलुणा ॥ वचन ॥११॥
॥ ढाल आठमी ॥ ॥ फूलना चोरस प्रभुजीने शिर चढे । ए देशी ॥ गुप्ति संभारोरे त्रीजी मुनिवरु, जेहथी परम आनंदोजी। मोह टले घनघाती परिगले, प्रगटे ज्ञान अमंदोजो ॥ गुप्ति० ॥१॥ करि शुभ अशुभे भव भ्रम जे छ, तिण तजि तनु व्यापारोजी। चंचल भाव ते आस्रव मूल छे, जीव अचल अविकारोजो ॥ गुति ॥२॥ इंदि विषय सकलनो द्वार ए, बंध हेतु द्रढ एहोजो। अभिनव कर्म ग्रहे तनु योगथी, तिग थिर करिए देहोजो ॥ युतिः ॥३॥ आतम वीर्य फुरे पासंग जे, ते कहिए तनु योगजो।
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