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अप प्रवचन मातानी सडझायो.
सावत सर्वे निर्झरा, आस्त्रवपर आयत्त, सलुणा ॥वचन०॥६॥ ईम जाणी थिर संजमो, न करे चपलीमंथ, सलुणा। आरमानंद आराधतां, आज्ञेच्छो निग्रंथ, सलुणा ॥ वचन०॥७॥ साध्य शुद्ध परमातमा, तसु साधन उत्सर्ग, सलुणा। बारे भेदे तप द्विविधे, सकल श्रेष्ठ व्युत्सर्ग, सलुणा ॥वचन०॥८॥ समकित गुण गुणठाणे कों, साध्य अयोगी भाव, सलुणा । उपादानता तेहनी, गुप्तिरूप थिरभाष, ससुगा ॥वचन०॥९॥ गुप्ति रुचि गुप्ते रूमा, कारण समिति प्रच, सगा। करता थिरता ईहता, ग्रहे तत्त्व गुग संब, सांगावचन०॥१०॥ अपवादे उस्लगनो, दृष्टि न चुके जेह, सलुणा।
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