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अष्ट प्रवचन मातानी सइझायो. भाव अहिंसकता वधे, सर्व संवर अनुकुल रे ॥ साधु० ॥२ मौनधारी मुनि नवि बहे, वचन जे आश्रव गेहरे। आचरण ज्ञानने ध्याननो, साधक उपदिसे तेहरे ॥ साधु० ॥३॥ उदित पर्याप्ति जे वचननी, ते करी श्रुत अनुसाररे। बोध प्रागभावी सजायथी, वलि करे जगत उपगाररे ॥ साधु०॥४॥ साधु निज वीर्यथी परतणो, नवि करे ग्रहणने त्यागरे। ते भणी वचन गुप्ति रहे, एह उत्सर्ग मुनि मार्गरे ॥ साधु० ॥५॥ योग जे आश्रवपद हतो, ते को निर्झरा रूपरे। लोहथी कंचन मुनि करे, साधता साध्य चिद्रपरे ॥ साधु० ॥६॥ आत्म हित पर हित कारणे, आदरे पांच सिझायरे ।.
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