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अष्ट प्रवचन मातानी सझायो.
एम विचारी कारणेजी, करे गोचरी तेह ॥ मुनी० ॥ ९ ॥
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क्षमावंत दयालुआजी, निस्पृही तनु नीराग । निर्विषयी गजगतिपरेजी,
बिचरे मुनि महा भाग ॥ मुनी० ॥ १० ॥
परमानंद रस अनुभव्याजी,
निज गुण रमता धीर । देवचंद मुनि वंदतांजी, लहिये भवजल तीर ॥ मुनी० ॥ ११ ॥
|| ढाल बीजी ॥
|| भावना मालती चूसीए ॥ ए देशी ॥
साधुजी समिति वीजी आदरो, वचन निर्दोष परकासरे । गुप्ति उत्सर्गनो समिति ते,
मार्ग अपवाद सुविलासरे ॥ साधु० ॥ १ ॥ भावना वीजा महाव्रततणी, जिन भणी सत्यता मूलरे ।