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'अष्ट प्रवचन मातानी सझाया.
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जिन वंदन ग्रामांतरेजी,
के आहार निहार ॥ मुनी० ॥ ४ ॥
परम चरण संवर धरुजी, सर्व जाण जिन दीठ ॥ शुचि समता रुचि ऊपजेजी, तिणे मुनिने ए ई ॥ मुनी० ॥ ५ ॥ राग वधे थिर भावथीजी,
ज्ञानविना परमाद | वीतरागता ईहताजी,
विचरे मुनि साल्हाद ॥ मुनी० ॥ ६ ॥ ए शरीर भव मूल छे जी,
तसु पोषक आहार ।
जाव अयोगी नवि हुवेजी,
त्यां अनादि आचार ॥ मुनी० ॥ ७ ॥ कवलाहारे निहार छे जी,
एह अंग व्यवहार ।
धन्य अतनु परमातमाजी,
जिहां निश्चलता सार. मुनी० ॥ ८ ॥ पर परिणति कृत चपलताजी,
कीम मूकस्येरे एह ।
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