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अब प्रवचन मातानी सझायो.
गुप्ति एक संवरमयी, उछरंगीक परिणाम | संवर निर्झर समितिथी, अपवादे गुणधाम ॥ ५ ॥ द्रव्ये द्रव्यत चरणता,
भावे भाव चरित ।
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भाव द्रष्टि द्रव्यत क्रिया, सेवि लहो शिव मित्त ॥ ६ ॥ आतम गुण प्रागभावथी, जे साधक परिणाम ।
समिति गुप्ति ते जिन कहे, साध्य सिद्धि शिव ठाम ॥ ७ ॥
निश्चय करण रुचि थई समिति गुतिधर साधि । परम अहिंसक भावथी, आराधे निरुपाधि ॥ ८ ॥ परम महोदय साधवा, जेह थया उजमाल । श्रमण भिक्षु माहण यति, गावं तस गुणमाल ॥ ९ ॥
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