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अष्ट प्रवचन मातानी सझ्झायो.
॥ दोहरा ॥ सुकृत कल्पतरु श्रेणिनी, वर उत्तरकुरु भोमि । अध्यात्म रस शशि कला, श्री जिन वाणी भौमि (नौमि?)॥१॥ दीपचंद पाठक सुगुरु, पय वंदी अवदात। सार श्रमण गुण भावना, गाइशुं प्रवचन मात ॥२॥ जननी पुत्र हित शुभकरो, तिम ए पवयण माय । चारित्र गुण गणवर्द्धनी, निरमल शिव सुखदाय ॥३॥ भाव अयोगी करण रुचि, मुनिवर गुप्ति धरंत । जो गुप्ति ना रहि शके, तो सुमते विचरंत ॥ ४॥
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