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साधुनी पंच भावना. ~~~~~~~.......-------------... धारी शुद्ध तत्त्व विचारवावाला राजसागर नामा पाठक तेमना शिष्य निर्मल ज्ञान अने निर्मल धर्मना भंडार सहु संघने हितकारी ज्ञानधरम नामना पाठक वली ॥४॥
राजहंस सहगुरु सुपसाये, देवचंद्र गुण गायजी। भविक जीव जे भावना भावे, तेह अमित सुख पायजी ॥ भ० ॥५॥ जेसलमेरी शाह सुत्यागी, वईमान वड भागीजी। पुत्र कलत्र सकल सोभागी, साधु गुणना रागीजी ॥ भ० ॥६॥ तस आग्रहथी भावना भाई, ढालबंधमां गाईजी। भणशे गुणशे जे ए ज्ञाता, लहेशे ते सुख शाताजी ॥ भा०॥७॥ मन शुद्ध पंचे भावना भावो, पावन जिन गुण पावोजी । मन मुनिवर गुण संग वसावो, सुख संपति गृह थावोजी ॥ भा०॥८॥
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