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साधुनी पंच भावना.
बृहत्कल्प सूत्रनी वाणी, दीठी तेम कहाणीजी ॥ भा०॥ २ ॥
अर्थः-ए पंच भावना मुनिओना मनने संवर निपजावनारी संवर भावनी खाण वखाणी छे अने एर्नु वखाण बृहत्कल्प भाष्यमां जेम देख्युं तेम अहिंआं कर्तुं छे ॥२॥
कर्म कतरणी शिव निसरणी, ध्यान ठाण अनुसरणीजी। चेतन रामतणी ए घरणी, भव समुद्र दुःख हरणोजी ॥ भा० ॥३॥
अर्थः-ए भावनाओ दुष्ट कर्मने कापवाने कतरणी समान, शिव महेलमां चढवाने निसरणी समान, शुद्ध ध्यान वधारवावाली अने थिरता आपवावाली वली गुणठाणानी श्रेणिए चढवामां आधारभूत छे, आत्मानुं घर संभालवा सुधारवावाली माटे चेतन घरनी अने भव समुद्रना दुःखथी तारखा नाव अने झहाज समान छे ॥३॥
जयवंता पाठक गुण धारी, राजसागर सुविचारीजी । निर्मल ज्ञान धरम संभाली, पाठक सहु हितकारीजी ॥ भा०॥४॥ अर्थः-कर्म शत्रुने जीतवावाला जयवंता उत्तम गुण१ श्रीमद् देवचंद्रनी पंचभावनापर लखायलो टबो स्वोपज्ञ नथी.
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