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साधुनी पंच भावना.
आतम ध्यानथी ए तर्या ॥ तु.॥ प्रणमे ते देवचंद्र ॥ भ०॥ १६ ॥
अर्थः-भरत चक्री, इलायचि कुंवर, तेतली मुनि, ए आदि मुनिओना वृंद शुद्धात्म ध्यानथी तस्या छे तेने देवचंद्र मुनि वंदे छे. परमार्थ ए के घणो काल अगर थोडो काल वाह्य चारित्र प्रवृत्ति करो पण ज्यारे पूर्ण समभाव आदरी समयानंतर शुद्धात्म उपयोगमा मग्न लीन थशो तोज केवलज्ञानादि शुद्ध गुणो पामी सिद्धि वरशो ॥ १६ ॥
॥ ढाल ६ छठी॥ शैलग शेजेजे सिद्ध्या ॥ ए देशी ॥ भावना मुक्ति निशाणी जाणी, भावो आसक्ति आणीजी। योग कषाय कपटनी हाणी, थाये निर्मल जाणीजी ॥ भावना ॥१॥
अर्थः-ए पंच भावना मुक्तिनी निशानी अर्थात निसरणी छे. एम जाणी ए भावनाओमां विशेष रक्त थई तन्मयताए भावो. तेथी अप्रशस्त योग कषायो अने कपट आदि दुर्गणोनी हाणी थाय. अने ए भावना निर्मल जाणी जे सेवे ते उतावलो आत्म शुद्धता पामे ॥ १ ॥
पंच भानना ए मुनि मनने, संवर खाणी वखाणीजी।
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