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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुनी पंच भावना. अर्थः-- जेने समयांतर वस्तुना छता आत्मशाश्वता भावनुं अनंत दर्शन ज्ञान छे ते आत्मभावे सत्तापणे सदा थिर छे. अने शुरूनयद्रष्टे स्वस्वभावमां रमण करीये तो दर्शन ज्ञान चारित्र सदा आत्मभावयी अभेद अने प्रगटपणे थिर छे. ते अक्षय महा स्वभावाचरण सकल समय परमानंद आपवावालं छे || ३ ॥ तिन लोक त्रिहुं कालनी ॥ तु० ॥ परिणति तीन प्रकार ॥ भ० ॥ एक समे जाणे तिणे ॥ तु० ॥ नाण अनंत अपार ॥ भ० ॥ ४ ॥ ९८३ अर्थः-- आत्मा ऋण लोकमां रहेला द्रव्योनी उत्पाद व्यय ध्रुवरूप व प्रकारनी परिणति सकल समय समकाले जाणे छे तेथी तेनुं अंत रहीत ऊपार ज्ञान छे ॥ ४ ॥ सकल दोपहर शाश्वतो ॥ तु० ॥ वीरज परम अदोन ॥ भ० ॥ सूक्षम तनु बंधन विना ॥ तु० ॥ अवगाहना स्वाधीन ॥ भ० ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only अर्थः-- आत्मा रागद्वेष अने जन्म मरणादि सकल दोषोने हरवावालो पोते स्वयंसिद्ध शाश्वतो छे, वली परम अचल अनंत वीर्यवंत अने - ममत्व तज्येयी दीनता रहित छे, कार्मण आदि सूक्ष्म तनु बंधन विना जेनो अवगाहना अलपणे पोताने स्वाधीन छे ॥ ५ ॥ ३३
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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