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साधुनी पंच भावना.
more.. .... तेथी कारमुं छे परवस्तु छे. माटे हे भवि ! तमे एनी ममता अने स्नेह संभाल छोडी शुद्ध निरंजन आत्मदेवने ध्यावो पोताना शुरू स्वरूपनो अनुपम अनुभव अभ्यास करो ॥१॥
नरभव श्रावक कुल लह्यो ॥ तु० ॥ लाधी समकित सार ॥ भविक०॥ जिन आगम रुचिशं सुणो ॥ तु.॥
आलस निंद निवार ॥ भविक०॥२॥ अर्थः--उत्तम आर्य क्षेत्रमा नरभव श्रावककुल सद्गुरु अने सत्शास्त्र योग पाम्या के जे दशे द्रष्टांत पामवो दुर्लभ छे. एवी सामग्री पामी विषय प्रमाद वशे फोगट न गमावो अने सार समकित पण पाम्या छो माटे आलस अणे निद्रा छोडी जीनेश्वरे प्ररुपेलं आगम के जेमा सम्यक्प्राक्रम फोरी सकल कर्मनो नाश करी परमनिवृत्ति रूप मोक्षपदनी प्राप्ति थाय ए आदि भाव बताब्या छे ते आगम परम प्रेम रूचि आदर सहित सांभलो. वली आगममां पंचास्तिकायना अने नवे तत्त्वना भाव प्रत्यक्षपणे सिद्ध करी देखाड्या छे ते सांभलो शंकादि दोष टाली निःशंक निर्भयपणे मोक्षमार्ग साधो ॥ २ ॥
समयांतर सहभावनो ॥ तु०॥ दर्शन ज्ञान अनंत ॥ भ० ॥ आतम भावे थिर सदा ॥ तुं०॥ अक्षय चरण महंत ॥ भ० ॥३॥.
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