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साधुनी पंच भावना.
अर्थः-करकंडु मुनि, नमिराज रुषी, दुम्मुह आदि ऋषीश्वरोने गाईए, वली मृगापुत्र हरिकेशी मुनि के जेणे सत्यार्थ मुनिपणुं आदरयुं तेना चरणकमल हुं नित्ये प्रत्ये वंदु छु ॥ १६ ॥
साधु चिलाती सुत भलोरे, वली अनाथी तेम। एम मुनि गुण अनुमोदतारे, देवचंद्र सुख खेमरे ॥ प्राणो०॥ १७ ॥ अर्थः--वली रूडो चिलातीपुत्र नामा साधु वली अनाथी आदि निग्रंथना गुणोनी अनुमोदना करतां देवचंद्र मुनि कहे छे के क्षेम कुशलता शिवपद पामीए ॥ १७॥
॥ ढाल ५ मी॥ इणिपरे चंचल आउखुं जीव जागोरे ॥ ए देशी ॥ चेतम ए तन कारिमो तुमे ध्यावोरे, शुद्ध निरंजन देव। भविक तुमे ध्यावोरे, शुद्ध स्वरूप अनूप ॥ भविक० ॥१॥
अर्थ:--हे चेतन ! आ शरीर कारमुं छे एटले क्षणमां छे अने क्षिणमां नहीं, क्षिणमा निरोगी अने क्षिणमा रोगाक्रांत, क्षिण सबळ निर्बल एम अथिर परीणतिवालं ए शरीर
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