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साधुनी पंच भावना.
Mirrowa
__ अर्थ:--आखर पण देहर्नु ममत्व छोडवाथीज नियमा शिवसुख थाय छे तो ते देह आपथी छुटे तेमां तुजने शुं दुःख छे ? देहना ममत्ववडेज अनेक जातना कर्म रोग अने दुःख खडा थयां छे तो ते ममत्व तजवाथीज सुख थाय एमां शुं शंका छ ? ॥ १४ ॥
ए तन विणसे ताहरे, नवि कोई हाण। जो ज्ञानादिक गुणतणो, तुज आवे झाण ॥ रे जीव० ॥ १५ ॥
अर्थः--जो तने निज ज्ञानादिक गुणनं ध्यान आवे अने थीर रहे तो ए देह विणसतां ताहरी कोइ प्रकारनी हानि नथी ॥ १५ ॥
तुं अजरामर आतमा, अविचल गुण राण। क्षण भंगुर जड देहथी, तुज किहां पिछाण ॥ रे जीव०॥ १६ ॥
अर्थः--तुं जरा रहित अमर आत्म तत्त्व छं तुं ताहरा ज्ञान चारित्र कर्ता भोक्ता ग्राहकता व्यापकता आदि अनंत अविचल गुणोने राजा छु अने तुं पोतानो भूलथी ए गुणो मलीन करूंछं तो कोण शत्रु जबराईथी ताहरा गुणो मलीन को करावे छे ? माटे गुणी शुद्ध अने यीर राखी अचल
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